janta ka mnch janta ke liye |
राहुल उजीर की आत्महत्या या व्यवस्था और समाज. के द्वार की गयी------------ Posted: 30 Apr 2015 11:51 PM PDT फेल पास होना जिन्दगी के एकही है सिक्केके दो पहलू है,इसके लिए जिन्दगी कोई खत्म करले कितना दुखदायी है। अगर एक बार फेल होजाये तो जीवन खत्म नहीं होता जीवन अमूल्य है ,पर पता नहीं क्या होता जारहा है हमारे आने वाली पीढी को जरा सा दबाव बर्दाश्त नहीं कर पाती है।जब ११ वी फेल होने पर हमारे बच्चे इतना घातक कदम उठा सकते है तो वो जीवन का वह समय कैस बर्दाश्त कर सकेगे जब जीवन के इम्तिहान मे उन्हें अनेक प्रकार की परेशानी आयेगी ।जब १पद के लिए एक लाख फार्म पडेगा, उन्हें बाहर करेने के लिए उन्हींके मित्र तैयार मिलेगॆ। आज का पूरा दिन बेहद सदमे से भरा था,सबसे पहले उस बच्चे के साथ बेहद हृदय विदारक घटना घटी उसके घर जाने पर उसके माँ से मिलने के बाद मैं अपने आंसूओंको नहीं रोक पाया क्योंकि माँ बाप पर बच्चे को कुछ होजाने के बाद क्या बीतती है इसका अनुभव मै जानता हूं । मुझे याद है केन्द्रीय विद्यालय सगठंन के लिए. उसकी फोटो लेने के लिए मैं अपने मोबाइल. से फोटो ले रहा था विद्यालय के छत पर फोटो लिया पर अच्छी नहीं आयी तो नीचे बरामदा में उसके बाद लिया। मैं उसे पढाता नहीं था पर हर बच्चे से मै थोडा जुडाव करता था । पर आज जो विद्यालय मे जो घटा उसके बाद मन पूरी तरह से शिक्षक पेशे टूट गया ।अब लगता भगवान. ने कोइ दंड देने के लिये ही अध्यापक बनाया है, इससें अच्छा को अन्य कार्य कर लो पान बेच लो पर अध्यापक न बनो क्योंकि जिन बच्चों के अध्यापक अपना सब कुछ. लुटाने को तैयार रहता है । जिन बच्चों के लिए. पेशावर मे एक टीचर ने आतंकवादियों की गोली तक खाई, वहीं बच्चे और उनके घर वाले अध्यापक को कभी सम्मान नहीं देते ।आज से दोमाह. पहले १०वी के छात्रों ने मार पीट कर लिया था तो वे बाहरी बच्चे स्कूल के बच्चों को मारने आये थे सारे बेवकूफ अध्यापक उनकों बचाने का जुगाड़. कर रहें थे ,किस प्रकार मेरे बच्चो की रक्षा हो ।यानी अध्यापक. अपना सब कुछ देने को तैयार है उन्हें पर वे लोग अध्यापक को अपना कब दुश्मन मान लें पता नहीं । इस लिए लोग कहते है ज्यादा इमोशनल न हॊ वह सही ।पर अध्यापक का पेशा ही इतना घटिया है कि बच्चे ही हमारे लियें केन्द्र रहते है अगर किसी बच्चे को मार दो सारा दिन अफसोस रहता है मन दुखी रहता है। पर यह गलत है अब अध्यापक को प्रेटिकल होना पडेगा इसे एक व्यवसाय की तरह देखें और व्यवहार. करे । पर अन्त मे आचार्य चाणक्य के शब्दों मे इतना ही कहना चाहूंगा जो समाज, राष्ट्र, एवं बालक. शिक्षक. की इज्जत नहीं करता उसकी रक्षा परमात्मा भी नहीं कर सकता । |
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