janta ka mnch janta ke liye

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अकबर बीरबल

Posted: 03 May 2015 08:30 AM PDT

एक समय की बात है। एक आदमी को तोते में बड़ी ही दिलचस्पी थी। वह उन्हें पकडता, सिखाता और तोते के शौकीन लोगों को अच्छे दामों में बेच देता था। एक बार उसके हाथ बहुत ही सुंंदर तोता लग गया। उसने उस तोते को अच्छी-अच्छी बातें सिखाई। उसे बोलना सिखाया। वह उसे लेकर अकबर के दरबार में पहुंच गया। दरबार में तोता पालने वाले ने तोते से पूछा ये बताओ ये किसका दरबार है। तोता बोला, यह बादशाह अकबर का दरबार है। ये सुनकर अकबर बहुत ही खुश हुए। वे उस आदमी  से बोले, हमें यह तोता चाहिए, बोलो इसकी क्या कीमत मांगते हो। वह बोला जहांपनाह सब कुछ आपका है। आप जो दें वही मुझे मंजूर है। अकबर को जवाब पसंद आया और उन्होंने उस आदमी को अच्छी कीमत देकर उससे तोते को खरीद लिया। 

महाराजा अकबर ने तोते के रहने के लिए बहुत खास इंतजाम किए। उन्होंने उस तोते को बहुत ही खास सुरक्षा के बीच रखा और रखवालों को हिदायत दी कि इस तोते को कुछ नहीं होना चाहिए। यदि किसी ने भी मुझे इसकी मौत की खबर दी तो उसे फांसी पर लटका दिया जाएगा। अब उस तोते का बड़ा ही ख्याल रखा जाने लगा, लेकिन बदकिस्मती से वह तोता कुछ ही दिनों बाद मर गया। अब उसकी सूचना महाराज को कौन दे। रखवाले बड़े परेशान थे। तभी उनमें से एक बोला कि बीरबल हमारी मदद कर सकता है। यह कहकर उसने बीरबल को सारा वृतांत सुनाया और उससे मदद मांगी।

बीरबल ने कुछ सोचा और फिर रखवाले से बोला ठीक है तुम घर जाओ महाराज को सूचना मैं दूंगा। बीरबल अगले दिन दरबार में पहुंचे और अकबर से कहा, हुज़ूर आपका तोता अकबर ने पूछा हां हां क्या हुआ मेरे तोते को? बीरबल ने फिर डरते-डरते कहा आपका तोता जहांंपनाह हां- हां बोलो बीरबल क्या हुआ तोते को। महाराज, आपका तोता बीरबल बोला। अरे खुदा के लिए कुछ तो कहो बीरबल मेरे तोते को क्या हुआ, अकबर ने खीजते हुए कहा, जहांपनाह आपका तोता ना तो कुछ खाता है ना कुछ पीता है। ना कुछ बोलता है ना अपने पंख फड़फड़ाता है, ना आंखें खोलता है और ना ही राज ने गुस्से में कहा अरे सीधा-सीधा क्यों नहीं बोलते की वो मर गया है। बीरबल तपाक से बोला हुज़ूर मैंने मौत की खबर नहीं दी, बल्कि ऐसा आपने कहा है, मेरी जान बख्श दीजिए और महाराज निरूत्तर हो गए।

कुंआ का विवाह

Posted: 02 May 2015 08:28 PM PDT


एक बार महाराज कृष्णदेव राय और तेनालीराम में किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई और तेनालीराम रूठकर कहीं चले गए। शुरू शुरू में तो महाराज ने गुस्से में कोई ध्यान नहीं दिया, मगर जब आठ-दस दिन गुजर गए तो महाराज को बड़ा अजीब सा लगने लगा। उनका मन उदास हो गया। उन्हें कुछ चिंता भी हुई। उन्होंने तुरंत सेवकों को उनकी खोज में भेजा। सेवकों ने आसपास का पूरा क्षेत्र छान मारा, मगर तेनालीराम का कहीं पता न चला। महाराज सोचने लगे कि क्या करें? अचानक उनके दिमाग में एक उपाय सुझा।

उन्होंने आसपास और दूर-दराज के सभी गांवों में ऐलान करवा दिया कि महाराज अपने राजकीय कुएं का विवाह रचा रहे हैं। इसलिए गांव के सभी मुखिया अपने-अपने गांव के कुअों को लेकर राजधानी पहुंचे, जो भी मुखिया आज्ञा का पालन नहीं करेगा, उसे दंड स्वरूप बीस हजार स्वर्ण मुद्राएं जुर्माना देनी होंगी। यह ऐलान सुनकर सभी हैरान रह गए। भला कुएं भी कहीं लाए ले जाए जा सकते हैं। कैसा पागलपन है। कहीं महाराज के दिमाग में कोई खराबी तो नहीं आ गई। जिस गांव में तेनालीराम वेष बदलकर रह रहा था, वहां भी यह घोषणा की गई। उस गांव का मुखिया भी काफी परेशान हुआ।

तेनालीराम इस बात को सुनकर समझ गए कि उसे खोजनेे लिए ही महाराज ने यह चाल चली है। उसने मुखिया को बुलाकर कहा- मुखिया जी, आप बिल्कुल चिंता न करें, आपने मुझे अपने गांव में रहने को जगह दी है। इस उपकार का बदला मैं जरूर चुकाऊंगा। मैं आपको एक तरकीब बताता हूं। आप आसपास के गांवों के मुखियाओं को एकत्रित करके राजधानी की ओर प्रस्थान करें। मुखिया ने आस-पास के गांवों के चार-पांच मुखिया एकत्रित किए और सभी राजधानी की ओर चल दिए। तेनालीराम उनके साथ ही था। राजधानी के बाहर पहुंचकर वे एक जगह रूक गए। उनमें से एक को तेनालीराम ने मुखिया का संदेश लेकर राजदरबार भेजा। वह व्यक्ति दरबार में पहुंचा और तेनालीराम के कहे अनुसार बोला- महाराज हमारे गांव के कुएं विवाह में शामिल होने के लिए राजधानी के बाहर डेरा डाले हुए हैं।

आप कृपा करके राजकीय कुएं को उनकी अगवानी के लिए भेजें। महाराज उसकी बात सुनते ही समझ गए कि यह तेनालीराम की सूझबूझ है। उन्होंने तुरंत पूछा- सच-सच बताओ कि तुम्हे ये युक्ति किसने बताई है? वह बोला महाराज कुछ दिन पहले हमारे गांव में एक परदेसी आकर ठहरा है, उसी ने हमें ये तरकीब बताई है। कहां है वह? राजा ने पूछा। मुखिया जी के साथ राजधानी के बाहर ही ठहरा हुआ है। महाराज स्वयं रथ पर चढ़कर राजधानी से बाहर गए और बड़ी धूमधाम से तेनालीराम को दरबार में वापस लाए। फिर गांव वालों को भी पुरस्कार देकर विदा किया।

निराशा न हो

Posted: 02 May 2015 07:27 PM PDT

सफलता या असफलता  दोनो  एक ही सिक्के के दो पहलू है।अगर आप सफल है तो आप अच्छे है और असफल होने पर आप खराब है या सब कुछ खत्म होगया यह सोचना गलत है क्योंकि जब आप असफल होते है तो इसका पहला अर्थ है आप सम्पूर्ण मन से प्रयास नहीं किया था, दूसरा  प्रकृति ने आप को एक और अवसर दिया है अच्छा  करने  का ।  हो सकता है आप का रास्ता गलत हो आपकों  ईश्वर ने किसी अन्य कार्य के लिए भेजा हो आप अन्य कार्य कर रहें हो क्योंकि हर. व्यक्ति का यहाँ आने का  कारण निश्चित है अगर वह उस कारण को पहचान ले तो सफलता उसके चरण चूमती है।नही पहचानते तो ईश्वर एक मौका देता है कि तू अपने लक्ष्य को पहचान ।तेरा कहीऔर है।

चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!

जाग तुझको दूर जाना!

अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले!

या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;

आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया

जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले!

पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना!

जाग तुझको दूर जाना!

बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?

पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?

विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,

क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?

तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!

जाग तुझको दूर जाना!

वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया,

दे किसे जीवन-सुधा दो घँट मदिरा माँग लाया!

सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या?

विश्व का अभिशाप क्या अब नींद बनकर पास

आया?

अमरता सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?

जाग तुझको दूर जाना!

कह न ठंढी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,

आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;

हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका,

राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!

है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना!

जाग तुझको दूर जाना!


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